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Tanha raah ka राही.... तुम बाम ना लगाते

गमें-दिल मेरा बढ़ाते तो कुछ और बात होती,
तुम बाम पर न आते तो कुछ और बात होती।

दिल में लगी जो आतिश सोजिश बनी है कबसे,
तुम गर उसे बुझाते तो कुछ और बात होती।

बस हम तुम्हें मनाये ये नहीं है तौर-ए-उल्फ़त,
कभी हमको तुम मनाते तो कुछ और बात होती।

लहजे से उसके दम टपकता है रस गुलों का,
वो शेर गुनगुनाते तो कुछ और बात होती।

तेरे बदन के बारे बताया किसी ने ऐसा,
हम वो बात ज़बाँ पे लाते तो कुछ और बात होती।

चुप करके नग़मा-गर को उसने कहा था 'तनहा',
की कुछ तुम सुनाते तो कुछ और बात होती।

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

29-May-2022 11:16 PM

बेहतरीन रचना

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Gunjan Kamal

28-May-2022 08:21 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Swati chourasia

28-May-2022 08:05 PM

Very beautiful 👌

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